जिंदगी का एक उसूल है कि अगर आप खुद से बहस करोगे तो आपको अपने सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। लेकिन अगर दूसरों से बहस करोगे तो कई नए सवाल खड़े हो जाएंगे। जब इंसान खुद की गलतियों में वकील और दूसरे की गलतियों में जज बन जाता है तो फैसले नहीं फासले हो जाते हैं।
गलती को स्वीकार करने की आदत डालें
कोई भी इंसान ऐसा नहीं है जो अपनी जिंदगी में कोई गलती नहीं करता हो। हर इंसान अपनी जिंदगी में कोई न कोई गलती जरूर करता है। यह बात अलग है कि वह मानता नहीं है। इससे उसके अहम को तो संतुष्टि मिलती है, लेकिन वह दूसरों की नजरों में असंतुष्टि का कारण बन जाता है। बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो वाकई में गलत नहीं होते, लेकिन परिस्थितियों कारणवश उनसे भी गलतियां हो जाती है। उनमें बहुत कम लोग ऐसे होते है जो उन्हें खुलें दिल से स्वीकार करते हैं। जो अपनी गलती पर अपना वकील बनने की बजाय उसे स्वीकार कर लेता है दूसरों की नजरों में उसका कद बढ़ जाता है। वहीं जो महज अपने अहम की संतुष्टि के लिए उसे स्वीकार नहीं करते उनका कद निश्चित तौर पर घटता है। अगर यकीन नहीं हो तो आजमा कर देख लिजिए।
जज बनने की आदत छोड़े
जिस दिन आप दूसरों की गलतियों में जज बनने की आदत छोड़ देंगे उस दिन से आपको अपने आप में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिलेगा यह तय है। क्योंकि दूसरों की गलतियों में जज बनना ही असल में विवाद की जड़ है। दूसरोें की गलती मेें जज बनने से पहले यह देख लें कि जब आप कोई गलती करते हैं और दूसरे उसमें जज बन जाते हैं तो आपको कैसा महसूस होता है। उस समय जो आप महसूस करते हैं, वैसा ही दूसरा इंसान महसूस करता है। लिहाजा इस आदत से जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी पीछा छुड़वा ले।
सुने, गौर करें और फैसला नहीं राय दे
खुद की गलती पर आत्ममंथन करें। दूसरे की गलती होने पर बजाय जज बनने के पहले उसकी सुनें। फिर उस पर गौर करें। अगर आपको लगता है कि सामने वाले की गलती है तो फैसला नहीं सुनाएं बल्कि सहजता और सर्तकता से अपनी राय रखें। यह ऐसा रास्ता है जो किसी भी विवाद का मध्यमार्ग निकालता है। यह रास्ता गलती करने वाले इंसान को सोचने पर मजबूर कर देगा। यही आपकी सफलता है।
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